Sunday 30 June 2024

संथाल हूल दिवस : जिसे हमे कभी भूलना नहीं चाहिए।

संथाल हूल दिवस : जिसे हमे कभी भूलना नहीं चाहिए।




महात्मा गांधी द्वारा मुंबई के गोवलिया टैंक मैदान में 1942 को दी गई "करो या मरो" को घोषणा के बारे में हम सभी ने इतिहास की किताब में पढ़ा हैं। हमने यह भी पढ़ा की कैसे इस घोषणा ने अंग्रेजी सत्ता की नीव को जड़ से हिला डाला। लेकिन हम में से कितने लोगो को सिधो, कान्हो, चांद, भैरव और इन चारो की बहने फूलो और झानो के बारे में पता है ? हम में से कितने लोग हूल दिवस को और इसके ऐतिहासिक महत्व के बारे में जानते है? 

यह वह दिवस था जब इतिहास में पहली बार संथाल योद्धाओं ने "करो या मरो" का नारा देकर सामंतवाद, भेदभाव, शोषण और अंग्रेजी सरकार के दमनकारी शासन के विरोध में आज के झारखंड के साहिबगंज के भगोडिया में 30 जून 1855 को 50 से जादा गांवो से आए आदिवासी, दलित, बहुजन योद्धाओं ने एकत्रित आकर हूल यानी विद्रोह तथा पवित्र क्रांति की घोषणा की थी। जिसमे फूलो और झानों ने लगभग एक हजार से जादा महिलाओं का नेतृत्व किया था। आज यह महिलाए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची से भी गायब है। 

आगे चलकर इस हूल के नायक सिधो और कान्हो को अंग्रेजो द्वारा सरेआम फांसी दी गई। उन्हें लगा की अब यह विद्रोह शांत हो जायेगा लेकिन आदिवासी अब और भी अधिक जागृत हो गए थे। उन्होंने इस विद्रोह को 1856 तक शुरू रखा लेकिन अंग्रेजो के अत्याधुनिक तकनीक के आगे उनके परंपरागत तीर-कमान जादा टिक न सके। इसके बाद भी यह संघर्ष सुदूर जंगलों में चलता ही रहा। जिसके बदौलत अंग्रेजों को अपने कानून में भी कई बदलाव करने पड़े।

आगे चलकर इसी हूल की प्रेरणा से धरती आबा बिरसा मुंडा खड़े हुए। जिन्होंने आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन और संस्कृति के बचाव में कड़ा संघर्ष किया। 

यह हूल दिवस ही भारत का पहिला विद्रोह था जिसे बाद में इतिहास से भुला दिया गया। आदिवासियों का जो महान संघर्ष पीढ़ियों से चल रहा है, उसको आदरपूर्वक संज्ञान में लेते हुए भारतीय संविधान में घटनाकर्ताओं ने पांचवी और छटी अनुसूचियों के साथ ही उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में कई कानूनों का संकल्प किया है। आदिवासियों को मूलभूत समस्याओं के संघर्ष को बदलते दौर में इसी संविधानिक रास्ते से आदिवासी लड़ रहे है। जल, जंगल, जमीन और संस्कृति की रक्षा के लिए एक हो रहे है। 

आज, हमारे आदिवासियों की प्रेरणा रहे इस 'हूल दिवस' को याद करते हुए आदिवासी संघर्ष को हूल जोहार।

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