Wednesday 20 November 2019


रानू मंडल का आखिर क्यों बना रहे है लोग मज़ाक ?
     

माफ़ कीजिए मैं कोई रानू मंडल का समर्थक अथवा उनका माध्यम समन्वयक भी नहीं. और ना ही मुझे यह लेख लिखने के लिए कहा है. लेकिन फिर भी रानू मंडल और तमाम ऐसे कथित मुख्यधारा से वंचित कलाकारों का उभार सामाजिक माध्यमों के इस दौर में हुआ है, उनके पक्ष में मुझे लिखना है. इस धारा में रानू मंडल को मात्र एक उदाहरण के रूप में आप प्रयोग कर सकते है. यह पक्ष एक लेखक के रूप में मै आप पर छोड़ता हूँ. 

      खैर, आधुनिकता के इस दौर में मीडिया की भूमिका किसीसे छुपी हुई नहीं है. समकालीन जगत सोशल मीडिया पर जादा जीता है ऐसा कहे तो कोई विपर्यास नहीं रहेगा. रानू मंडल जैसे अनेक जमीनी स्तर के कलाकार इसी मीडिया की देन है. अपितु सभी को व्हायरल हो जाने का सौभाग्य नहीं मिलता यह दूसरी बात हो सकती है.

      तथाकथित प्रस्थापित उच्च वर्गीय और ब्राह्मण्यवादी सौंदर्यशास्त्र में जिनका किसी भी प्रकार से अंतर्भाव नहीं किया जा सकता और जिनका संबध किसी भी प्रकार के ऐसे रसग्रहण से नहीं है जो कथित रुप में उच्च अभिरुचि संपन्न हो ऐसे कलाकार जब किसी प्रसंग अथवा कारणवश कथित रूप से 'फेमस' हो जाते है तब शायद उन्हें ऐसी प्रसिद्धि की आदत ना होने के कारण और 'सेल्फी' केन्द्रित जनसंख्या से कैसे पेश आए इसका पर्याप्त अनुभव ना होने के कारण और दिखाऊँपन से कोसो दूर के जीवन अनुभव के कारण अपनी प्रतिक्रया को दबाने का कौशल्य उनमें शायद नहीं होता.


किसी ट्रेन में भीख माँग कर अपना गुज़ारा करने वाली रानू मंडल गायक हिमेश रेशमियाँ जैसे कलाकार के एक स्पर्श मात्र से एकाएक प्रसिद्धि के वलय में आ गई थी. इसके बाद से मीडिया के सभी स्तंभ मानो रानू मंडल को समाज के समक्ष खडा करने में जुट गए. समाज के अनेको स्तरों से भी उन्हें मदत करने की बाढ़ आ गई. सलमान खाने ने बंगला भेट करने की खबर भी सुर्ख़ियों में बनी रही खैर वह गलत निकली. रानू मंडल से संबंधित सही-गलत खबरों का सिलसिला आज भी थमा नहीं हैं. इसी बिच भद्दे समाजसेवा मुखवटा पहने उच्च वर्गीय तबके ने उन्हें अनेक सामजिक कार्यक्रमों में बुलाना और इसी बहाने स्वयं को मीडिया के सामने परोसाना भी शुरू किया. फिर रानू मंडल को मेकप कर उनकी अनंतकाल से चली आती गरीबी की रेखाए ढकने का प्रयास को भी इसी विभाग में शामिल किया जा सकता हैं.

      आजकल जिस समाज ने रानू मंडल को कुछ दिनों तक सर पर रखा हुआ था उन्होंने ही उपरोक्त सभी अपने ही वर्ग-बंधुओ के क्रियाकलाप देखकर सोशल मीडिया पर ट्रोल करना शुरू कर दिया हैं. जिसमे तरह तरह की विक्षिप्त, भद्दी टिप्पणिया और उनकी पूर्व गरीबी और उनके दिखने का मजाक और उनके जेंडर की नकारात्मक आलोचना और उनके सामाजिक आचरण पर प्रश्न आदि का समावेश है. यह सारे लीला अवसर देखकर हमें खुद को सवाल पूछना चाहिए की वह कौन लोग है जो ऐसी हरकते कर रहे है ? क्या हम उन सभी लोगों में सम्मिलित नहीं और क्या हम भी उसी सामाज का अंग नहीं जो बेहद ही गिरगिटिया है. ऐसा है तो हमें सोचना होगा और रानू मंडल को उनका जीवन सकारात्मक तरीके से जीने के लिए शुभकामनाएं देनी होगी. खैर, यह बात सिर्फ रानू मंडल की नहीं. फिर से बाता दूँ, वह तो आज का केवल एक उदाहरण है.          



14 comments:

  1. कुणाल, मेरे भाई महिनों के अंतराल के बाद लेख पढ रहा हूॅ!

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    1. हा सर, थोड़ा व्यस्त था. लेकिन अब फिर से निरंतर प्रयास करूंगा. प्रतिक्रया के लिए आभार.

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  2. Well written. Well chosen example.

    Keep writing and be the change.


    Regards-

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  3. सही लिखा है कुणाल आपने...

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    1. धन्यवाद. ऐसेही हौसला बनाते रहे.

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  4. तुमचा लेख समाज माध्यमाच्या आकंठ प्रेमात बुडालेल्या आणि त्याच्याच लाटेवर स्वार होऊन अचानक प्रसिद्धी पावलेल्या आशा दोन्ही प्रवृत्तींचा समाचार घेणारा आहे. अतिशय थोडक्यात, शालजोडीतले. खूप छान

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    1. सर, एक प्रयत्न केला आहे. आपल्या प्रतिक्रिये बद्दल आभार.

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  5. थैंक्स. प्रेरणा मिलते अशा प्रतिक्रियांमधून.

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