Friday 16 February 2018

नॅन्सी फ्रेझर और सामाजिक न्याय कि अवधारणा




समकालीन वास्तविकता में जीन कुछ गिने चुने विचारक एवं चिंतको का नाम जागतिक परिपेक्ष में आदरसे लिया जाता है, उनमे से एक नाम ‘नॅन्सी फ्रेजर’ जी का है. सामजिक सुधार के क्षेत्र में 'चिकत्सक सिद्धांतवादी' नॅन्सी अपने आप को 'फ्रॅंकफुर्ट स्कूल' से संबधित मानती है. जर्मनी स्थित 'फ्रॅंकफुर्ट' शहर के 'इन्स्टिटूट फ्युर सोत्सियालफोर्शुंग' अर्थात समाज संशोधन संस्थान में 'फ्रांकफुर्ट स्कूल' के विचारधारा कि शुरुवात पोथीनिष्ठ मार्क्सवाद पर उठे वैचारिक मतभेद की अपरिहार्यता थी. सन १९२० के दशक से चली आ रही वैचारिक चर्चाये तथा मूलगामी मार्क्सवादी विचारधारा के मतभेदों के बिच 'फ्रॅंकफुर्ट स्कूल' की निर्मिति यह एक महत्वपूर्ण कदम था. तत्कालीन कथित साम्यवादी विचारधारा के उपयोजन कार्यक्रम से असहमत मार्क्सवादी चिंतको ने इस 'स्कुल' के माध्यम से ‘नव मार्क्सवाद’ की नीव रखी. जिसमे टेओडोर अाडोर्नो तथा युर्गेन हाबरमास आदि जर्मन चिंतक तथा फ्रेडरिक जेमिसन जैसे अमेरिकन विचारक प्रमुख है. नॅन्सी फ्रेजर अपने आप को इसी 'फ्रॅंकफुर्ट स्कूल' का चिंतक मानने के साथ ही समकालीन जागतिक परिपेक्ष में अपने चिकित्सक सिद्धांतो के माध्यम से उपयोजन का नवाचार प्रस्तुत करती है. 

नॅन्सी फ्रेजर का जन्म २० मई १९४७ को अमेरिका में हुवा. सन १९६९ में तत्वज्ञान विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद सन १९८० में उन्होंने 'दी ग्रॅज्युएशन सेंटर ऑफ़ दी सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क' से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. तदोपरांत कुछ वर्ष 'नॉर्थवेस्टर्न' विश्वविद्द्यालय के तत्वज्ञान विभाग में अध्यापन का कार्य शुरू कर न्यू यॉर्क स्थित ‘न्यू स्कूल’ में भी तत्वज्ञान विषयक अध्यापन कार्य शुरू किया. फिलहाल जर्मनी, फ़्रांस, स्पेन तथा नेदरलैंड आदि देशो के सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालयो मे नॅन्सीजी आगंतुक अध्यापन का कार्य करती है. 

सामाजिक न्याय की अवधारणा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण यह नॅन्सी फ्रेजर जी का महत्वपूर्ण अकादमिक तथा सैद्धांतिक कार्य माना जाता है. साथ, ही समकालीन दौर के 'आइडेंटिटी पॉलिटिक्स' तथा उदारमतवादी स्त्रीवाद की गहन समीक्षा कर वैश्वीकरण के परिपेक्ष में अपने विचार रखती है. 

आज समस्त मानवी समाज वैश्वीकरण के काल अनेक प्रकार के स्थित्यंतरो के बिच जूझ रहा है. वास्तविकतः वैश्वीकरण का बृहद परिणाम समस्त सामाजिक तबको पर हुवा है. अपितु वैश्विकरण के परिपेक्ष में बदलती सामाजिक न्याय, समता, बंधुता आदि मूल्य व्यवस्था एवं शास्वत मानवता के विकास की धारणा को बनाये रखने के लिए कार्य होना अत्यावश्यक है. इसी बिच नॅन्सी फ्रेजर के विचार महत्वपूर्ण साबित होते है. वैश्विक परिपेक्ष में जहा सामाजिक न्याय की अवधारणा आश्चर्य जनक रूप से तथा सापेक्षतापूर्ण ढंग से परिवर्तित होती जा रही है वही नॅन्सी फ्रेजर सामाजिक न्याय का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण कर उसके जागतिक उपयोजन का कार्यक्रम प्रस्तुत करती है. 

आधुनिक समाज में भी जहा जागतिक जनसंख्या का बहुसंख्य हिस्सा सामाजिक न्याय के अभाव संकट से जूझ रहा है. सत्तावादी मानसिकता के समतामूलक समाज के सपनो के अनूपयोजन कारको के कारण सामाजिक अन्याय को बढ़ावा मिल रहा है. यह केवल एक राष्ट्र या समाज की स्थिति नहीं अपितु समूचे विश्व परिपेक्ष की स्थिति है. नॅन्सी फ्रेजर इसी स्थिति पर भाष्य कर उसे सुधारने के लिए सामजिक बदलाव का मॉडल प्रस्तुत करती है. वह आशा व्यक्त करती है की इस प्रकारसे सामाजिक व्यवस्था का निर्वहन किया जाए जिसके उपयोजन से सभी समाज घटक एक ही पायदान पर हो. सहभागी समता का यह तत्व सुचारु रुप से चलाने हेतु नॅन्सी नया सैद्धांतिक मॉडल प्रस्तुत करती है. जिसे वे 'पार्टिसिपेटरी पॅरिटी' अथवा ‘सहभागितावादी समता’ का सिद्धांत कहती है. 

सहभागितावादी समता का सिद्धांत मूलतः पहचान (रिकग्नाइझेशन) तथा पुनर्वितरण (रेडिस्ट्रीब्यूशन) इन दो तत्वावधानो पर खड़ा है. मात्र, आधुनिक काल में वह बिना सहभागिता या प्रतिनिधित्व (रिप्रेसेंटेशन) के पूर्ण नहीं हो सकता है. यह त्रिमितीय परिमाण ही सहभागितावादी समता या सामजिक न्याय के सिद्धांत को पूर्णत्व को प्रदान कर सकता है. अपितु इसी सिद्धांत को उन्होंने 'पोस्ट वेस्टफेलियन डेमोक्रेटिक जस्टिस थेअरी' अथवा 'उत्तर वेस्टफेलियन गणतांत्रिक न्याय सिद्धांत' कहा है. उपरोक्त, पहचान, पुनर्वितरण तथा प्रतिनिधित्व आदि से निर्मित त्रिमितीय परिमाण सामाजिक न्याय के समतामूलक सिद्धांत के उपयोजन हेतु परस्पर व्यवहार पर सकारात्मक गहन प्रभाव प्रसारित करता है. जो की तांत्रिक तथा निति निर्धार के कार्य में मौलिक सिद्ध होता है. अथवा बगैर एक दूसरे तत्व के सामाजिक न्याय की अवधारणा का अपयोजन सिद्ध नहीं हो सकता. इसी लिए नॅन्सी फ्रेजर 'No redistribution or recognition without representation' अपनी इस ऐतिहासिक घोषणा के माध्यम से ‘पुनर्वितरण एव पहचान, प्रतिनिधित्व के तत्व के बिना अपूर्ण’ होने की बात करती है. 

वैश्वीकरण के दौर में जहा सामाजिक न्याय की अवधारणा पूर्णतः बदल रही है और समाज का हर एक तबका खुद की व्याख्या न्याय के संदर्भ में अमल में लाना चाहता हो उसी बिच संसाधनों का समानतापूर्वक पुनर्वितरण एवं नव आर्थिक व्यवस्था में मानवीय अधिकारों के मूलाधारो पर विराजित पहचान का अधिकार बगैर प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के बुनियादी उपयोजन से कदापि संभव नहीं हो सकता.      

अपितु, समकालीन परिपेक्ष में मानवाधिकारो का बढ़ता हनन वैश्विक परिपटल पर गहन चिंता का कारण बनता जा रहा है. वही फासीवादी सत्ताधारी ताकते शोषित वर्ग को अत्याधिक गुलामी की और खींच रही है. गरीबी अमीरी के बिच गहराती खाई घोर निराशा पैदा कर रही है. समाज का शक्तिशाली या सत्ताधारी वर्ग समाज के दबे - कुचले या शोषित वंचित तबके को और दबा कर सत्ता का दुरुपयोग करता है. इस शोषित वर्ग की सांस्कृतिक विरासते ध्वस्त कर अपना शासन मजबूत करने का प्रयास करता है. जिसके कारण आर्थिक, सांस्कृतिक एव राजनैतिक क्षेत्र में परिवर्तन शोषित वर्ग को सामाजिक न्याय का लाभ कराने हेतु उपरोक्त त्रिमितीय परिमाणो का उपयोजन महत्वपूर्ण हो जाता है. यद्यपि, मानवीयता के गहन सामाजिक संकट के बीच जुझ रहे समाज पर यदी पुनर्वितरण, पहचान एवं  प्रतिनिधित्व के त्रिमितीय तत्व के उपयोजन का अभाव समस्त शासक, सत्ताधारी एवं विकास के लाभकारी रहे वर्ग के लिये ‘राजनैतिक आत्महत्या’ के सामान सिद्ध होगा. यद्यपि, सामाजिक न्याय कि अनुपलब्धी ऐसे अमानवीय अन्याय को जन्म देगी. नॅन्सी फ्रेजर के यह विचार समकालीन वास्तविकता मे अत्याधिक प्रासंगिक साबित होते है. 

वैश्विक पररीपटल पर सातत्यपूर्ण गहन सामाजिक बदलाव के समीक्षणात्मक तथा चिकित्सक चिंतन से युक्त नॅन्सी फ्रेजर अपनी किताबो के माध्यम से आज इसी विषय को आगे ले जा राही है. जिसमे, सामाजिक न्याय के संदर्भ मे ‘रिडिस्ट्रिब्युशन अँड रेकग्नाईझेशन अ पॉलिटिकल, फिलॉसॉफिकल एक्सचेंज’, तथा ‘ऍडींग इंसल्ट टू इंज्युरी’ आदी प्रमुख है. एक चिकित्सक चिंतक होने के नाते नॅन्सी फ्रेजर सामाजिक न्याय पर प्रस्तुत किया गया चिंतन बदलते दौर मे महत्वपूर्ण है.  



संदर्भ -    
1) Feminism, the Frankfurt School, and Nancy Fraser
By Georgia Warnke
https://lareviewofbooks.org/article/feminism-the-frankfurt-school-and-nancy-fraser/#!
Published in Los angeles review of book 

2) Nancy Fraser : Is the hijab debate similar to the one on abortion ?
Speech on youtube 
https://www.youtube.com/watch?v=0KHRfnUCcko

3) Reframing justice in a globalizing world 
new left review 36 nov dec 2005

4) Nancy Fraser and the Theory of Participatory Parity
By - Estelle Ferrarese , 14 September 2015
http://www.booksandideas.net/Nancy-Fraser-and-the-Theory-of-Participatory-Parity.html

5) Rethinking recognition 
By - Nancy fraser 
https://newleftreview.org/II/3/nancy-fraser-rethinking-recognition

6) How feminism became capitalism's handmaiden - and how to reclaim it 
By - Nancy Fraser
https://www.theguardian.com/commentisfree/2013/oct/14/feminism-capitalist-handmaiden-neoliberal