Wednesday 22 April 2020


 Letter to the Prime Minister of India



Date 22 April 2020.
To,
Hon. Shri. Narendra Modi,
Prime Minister of India.

Respected Sir,

We write to apprise you that the term ‘social distancing’ suggested by WHO as a guideline to practice as a countermeasure against COVID-19 pandemic is followed in India.

So far India is concerned, this term has the propensity to be misconstrued and misused to isolate and ex-communicate the SC/ST/OBC/NT/Muslim communities. Racialisation of the term has been rampant in social media throughout the world and Indian media has taken it to a communal level.

It is a fact that Indian society follows a system of social hierarchy known as the caste system. We are well aware of the social stigma attached to the communities belonging to marginalized sections. This was practiced in some States of India typically against people belonging to the North-East of India for their racial features and people following Islam as their religion.

‘WHO’ has discontinued using the term ‘social distancing’ since 20th March 2020 and substituted it with ‘PHYSICAL DISTANCING’.

We are sure that you are not just concerned with the COVID-19 pandemic but also a more deadly virus of the caste system existing typically in India.

In the interest of justice, we request you to kindly look into the matter and  suggest to you to please change/alter/amend/substitute the term ‘social distancing’ with ‘physical distancing’. The amendment will be a wise move against the age old mental virus, the caste system.

Thanking you in anticipation.

Aniket Khadse (Advocate, Bombay High Court, Mumbai),
Himani Rawat (Advocate and Social Worker),
Kunal Ramteke (Independent Journalist and Social Worker).

Saturday 18 April 2020


प्रा. डॉ. आनंद तेलतुंबडे तथा अन्य विचारक और सामाजिक कार्यकर्ताओं के संदर्भ में खुली भूमिका



समकालीन परिप्रेक्ष में दलित, बहुजन, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिलावर्ग तथा सभी लैंगिक समुदाय तथा हाशिए के अन्य सभी तबकों को अपने संविधानिक अधिकारों की रक्षा हेतु लोकतंत्रात्मक और शांततापूर्ण आन्दोलन का हथियार उठाना मानो अत्यावश्यक ही हो गया है इस समाज को डॉ. बाबासाहब अंबेडकर तथा अन्य समतावादी महापुरुषों के महान त्याग से मिले अधिकार, संविधान के द्वारा स्थापित मूल्य और लोकतंत्र की रक्षा हेतु व्यवस्था जहा कम पड़ रही हो तभी व्यवस्था के अंतर्गत संकुचित सनातनवादी विचारधारा के तत्व इस के विरोध में कार्यरत होने का प्रयत्न करते नज़र आते है इसी कड़ी में संविधान, लोकतंत्र, मानवाधिकार, मानवी और विवेकवादी मूल्य आदि के सन्दर्भ में पुरज़ोर तरीकें से अभिव्यक्त होने वाले, अपनी कलम-कला और गतिविधिओं से शोषण के ख़िलाफ़ आवाज उठानेवाले, सामाजिक जागृति का कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक, अध्यापक, छात्र, कलाकार, मेहनतकश-मजदूर-किसान तथा सभी तरह के श्रमिक आदि सभी की आवाज़ दबाकर और एक तरह से उनका शोषण कर खुले रूप से धमकाने का प्रयास किया जा रहा हैंव्यवस्था की जवाबदेही जहा देश के लोग और संविधानिक दाइत्वों के प्रति होती हैं वही सत्ता में बैठे प्रतिक्रान्तिवादी तत्व संकुचित मनुवादी राष्ट्रवाद का सपना बुनने में और उसके क्रियान्वयन में व्यस्त हैं उनके यह मनसूबे निश्चित तौर पर इस देश के महान संविधान और न्याय व्यवस्था पर अटूट विश्वास होने के कारण हम यह मानते है की, बिना किसी हिंसा का रास्ता अपनाए और केवल और केवल संविधानिक मार्ग से ही ध्वस्त किए जा सकते हैं अपितु किए जाने चाहिए हमारी फुले-शाहू-अंबेडकरवादी विचारधारा हिंसा अथवा किसी भी प्रकार के अतिरेक का निषेध करती हैं इसके बावजूद भी अंबेडकरवादीयों पर थोते और गंभीर आरोप कर उन्हें दबाने, डराने, धमकाने की हर एक कोशिश संकुचित राष्ट्रवाद के तरफ़ बढ़ाएं गए कदम के रूप में देखनी होगी आज डॉ. आनंद तेलतुंबडे और अन्य विचारकों के उपर किए जानेवाले गंभीर आरोप तथा उन्हें डराना, दबाने की कोशिश करना निश्चित ही व्यवस्था का षडयंत्र हो सकता हैं खैर यह भी इतिहास है की, जब भी कभी सोचनेवाले तबके ने सत्ता द्वारा प्रायोजित शोषण पर प्रश्नचिन्ह उपस्थित किए तब-तब उनकी आवाज दबाने की कोशिश की गई। प्रतिक्रांति की हर संभव कोशिश सभी प्रकार के शोषण के समर्थक हमेशा से करते आये है। समता के पक्ष में और शोषण के ख़िलाफ़ सोचनेवाले तबके ने ऐसे क्रियाकलाप और षडयंत्रों का हर संभव और शांततापूर्ण ढंग से निषेध करना चाहिए। जैसे की डॉ. तेलतुंबडे द्वारा संविधानिक प्रक्रिया का सुचारू निर्वहन कर न्यायप्रणाली को संपूर्ण सहयोग देना उनके संविधानिक व्यवस्था के प्रति आदर और विश्वास को प्रदर्शित करता है मात्र केवल अपने संकुचित धेय्य और एक धर्मीय राष्ट्रवाद की स्थापना और प्रतिक्रन्तिवादी विचारधारा के उपयोजन हेतु संविधानिक मूल्यों की हत्या करने के लिए स्वातंत्र्य, समता, न्याय, बंधुता तथा धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संविधान के मूल्य और विवेक, शांति की आवाज बुलंद करनेवाले किसी भी नागरिक पर किसी भी तरह का असंविधानिक दबाव और शोषण होता है, तो इस तरह की घटनाओं का पुरज़ोर तरीके से और खुले रूप में हम सभी अंबेडकरवादी और सहयोगी निषेध व्यक्त करते है हम फ़ासीवाद का निषेध करते है। हम शोषण का निषेध करते है। जय भीम



दिनांक १८ एप्रिल २०२० 


- कुणाल रामटेके (मुक्त पत्रकार एवं सामजिक कार्यकर्ता)
- शुभांगी नानवटकर (छात्र, टाटा सामजिक विज्ञानं संस्था मुंबई)
- शरद कोदाने (सामजिक कार्यकर्ता, मध्य प्रदेश)