Thursday 9 January 2020

चौराहा और संविधान

शोषण के हैं दबे राज जो चौराहे पर खोलेंगे,
कोई पूछे लाख बार तो 'संविधान' हम बोलेंगे //

जाने कितने लाल हमारे हमने खोए सीमा पर
किन्तु कपट से जीता राजा बिना लढ़े मैदानों पर
आखिर कितने दिन हम उनकी 'मन की बात' पर डोलेंगे
शोषण के हैं दबे राज जो चौराहे पर खोलेंगे //१//

जाती-धर्म के राष्ट्रवाद का बिज जिन्होंने बोया है
मंदिर-मस्जिद की राजनीति से देश का दिल भी रोया है
अब असली 'बटवारे' वालो को शान्ति से ही पेलेंगे
शोषण के हैं दबे राज जो चौराहे पर खोलेंगे //२//

रामराज का परचम लेकर, 'रथ' जिन्होंने जोता था
जब दिल्ली-बंबई दहल गई थी, भगवान तुम्हारा सोता था 
साहबजी, अब रुको तनिक भी! प्यार का खेल खेलेंगे
शोषण के हैं दबे राज जो चौराहे पर खोलेंगे //३//


Copy Rights - Kunal Ramteke

6 comments:

  1. कुनाल, भाई नये बरस पर क्या बरसा है तू....

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    1. थँक्स भाई, पहली बार ट्राय किया है....

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  2. Very nice composition, straight but subtle attack on today's social conditions..good going!

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  3. Dear Ma'am, Thanks for the inspiration. trying 1st time.

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  4. Great Kunal...nice words...each line is meaningful...waah nice poem...keep writing 👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻💐💐💐💐

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