Monday 8 January 2018

शोषणाधिष्टीत वास्तविकता मे सम्यक समतावादी भूमिका 
 डॉ. सुनील अभिमान अवचार जी कि समकालिन भूमिका पर हृद अभिनन्द 






समकालीन शोषणाधिष्टीत सार्वत्रिक भयग्रस्त वास्तविकता मे प्रस्थापित साहित्यिक परिपेक्ष से अपनी सामाजिक भूमिका निर्वहन होना अत्यावश्यक है । मात्र, निजी तथा व्यवस्थात्मक हितबंधो मे लिप्त कथित विचारक, लेखक अनपेक्षित एवं आश्चर्यजनक चुप्पी साधे प्रतीत होते है । 

हाल ही मे जहा 'भीमा कोरेगाव' के रूप मे हुवा नृशंस तथा अमानुष हमला समुची संविधानिक मूल्य व्यवस्था एवं वैश्विक मानवता पर हमला है । वही, दिन ब दिन बढती अन्याय, अत्याचार, वंचना के बीच लेखक, कवी, विचारवंत बगैर किसी भूमिका के कैसे जी सकते है ? हा निःसंशय जी सकते है । अस्तू, व्यवस्था का वहन कर आत्मलाभात्मक हेतू इसका मूलाधार भी हो सकता है । 

मात्र, इसी व्यवस्था मे जहा यह वर्ग मौन है वही कुछ लेखक कवी विचारवंत इस व्यवस्था के सुधार तथा शोषण के प्रतिरोध कि पुरजोर बात रखते है । 

इसी कडी मे जागतिक कवी, विचारवंत, प्रा. डॉ.सुनील अभिमान अवचार इन्ही समतावादी भूमिका लेकर सकारात्मक परिवर्तन का आग्रह रखने वाले वैचारिक तबके कि और से प्रातिनिधिक भूमिका स्पष्ट करेंगे । समकालीन स्थिती कि चिकित्सा एवं परिवर्तन कि यह भूमिका निश्चित ही ऐतिहासिक सिद्ध होगी । सुनील जी का अभिनंदन । आभार ।

No comments:

Post a Comment