Sunday 14 June 2020

डॉ. मनीष गवई : यंग इंडिया के हीरो

 

            तब उम्र में मै इतना छोटा था कि मुझे यह बात भी याद नहीं की वह कौनसा साल रहा होगा. सही में समय कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला. लेकिन उस दिन की वह घटना मेरे दिमाग में आज भी ताज़ी है. जो मुझे सामाजिक परिवर्तन की संभावनाओं के पक्ष में एहसास दिलाती रहती हैं. किसानों की आत्महत्या और आकाल से सदैव पीड़ित महाराष्ट्र के विदर्भ प्रान्त के अमरावती जिले के मेरे छोटेसे गाँव रिद्धपुर में उस दिन 'मै अंबेडकर बोल रहा हूँ' इस 'एक पात्र नाट्य प्रयोग' का आयोजन दलित बस्ती में प्रतिष्ठापित बाबासाहब के पुतले के प्रांगण में हो रहा था. हमारे बड़े भाइयों ने कही से लाइट की व्यवस्था भी कर दी. कुछ लोगो ने मिलकर दूसरों के घरों से आवश्यक सामान भी जुटा लिया जिसमें लाउडस्पीकर के साथ एक-दो खुर्सियाँ भी शामिल थी. नाट्य प्रयोग की घडी समीप रही थी. दलित बस्ती के हम सभी लोग आयोजन स्थल पर जुट गए. पास की बकरियों की 'में-में' की बिच हम बच्चो को भी चुप रहने को बोला गया. हम तो चुप रहे लेकिन बकरियां कहा चुप बैठने वाली थी ! इसी बिच गाँव के किसी कार्यकर्ता ने कार्यक्रम शुरू होने कि घोषणा की. सभी उत्सुक थे. तभी अँधेरे से बाबासाहब जैसे सूट-बूट पहना एक आदमी आकर स्टेज पर खड़ा हो कर बोलने लगा 'मैं आंबेडकर बोल रहा हूँ'. हम देखते ही रह गए. वह आवाज आज भी मेरे मन में अपना एक ख़ास ठिकाना बनाएँ हुए है. शायद जो आज भी मुझे बताती है अंबेडकर ज़िंदा है और वह कभी मरा नहीं करते. इस घटना को बहुत दिन बीत गए थे. बाद में मुझे पता चला की वह व्यक्ति दुसरे कोई नहीं बल्कि अमरावती के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मनीष गवई है.  

            दिन बीत रहे थे. बारहवीं कक्षा के बाद मैंने शिक्षा में डिप्लोमा करने का निश्चित किया. पढ़ना शुरू हो गया था. तभी किसी ने पास ही के शहर में एक वक्तृत्व स्पर्धा होने की न्यूज बताई. मैंने उसमें भाग लेने का निश्चय किया. इसके पहले मुझे शहरों में होने वाले इस तरह की कॉम्पिटेशन्स का कोई जादा अनुभाव नहीं था. स्पर्धा के दिन मैं शहर गया. वहा भी मेरी पहचान का कोई नहीं था. वह शुरुवात के दिन थे. तभी एक व्यक्ति शायद जिसे मैं जानता था वह नजर आए. दिमाग पर जोर देकर सोचने के बाद भी समझ नाही रहा था की मैंने पहले इन्हें देखा भी है या नही? मैं उनके पास गया और पूछा क्या आप डॉ. मनीष गवई है जो कुछ साल पहले 'मै डॉ. अंबेडकर बोल रहा हूँ' के प्रयोग किया करते थे ? वे मुस्कुराएँ. फिर बातों और विचारों का कारवाँ ऐसा चला की जो आज तक चल रहा है.

            भारत सरकार के राष्ट्रीय युवा पुरस्करार्थी तथा आंतरराष्ट्रिय सार्क संघटना के युवादूत रहने वाले डॉ. मनीष गवई युवा विकास और सामाजिक भागीदारी के क्षेत्र में हमेशा से ही कार्यरत रहे हैं जो कठिन काल में भी युवाओं को आत्मविश्वास की कुंजी बताते है. मुख्यतः ग्रामीण भारत में जहा संसाधनों की कमी मुख्य मुद्दा बनकर उभरती हैं और महाराष्ट्र के विदर्भ जैसे प्रान्तों में तो हालात किसानों की आत्महत्या, रोजगार की कमी, अशिक्षा जैसे ढेरों मुद्दों से और भी कठिन हो जाता हो वहा मनीष जी जैसे लोग केवल अपने व्याख्यान ही नहीं बल्कि बुनियादी क्रियाकलापों से परिवर्तन का कार्य करते है. मसलन, आज-कल जहा कोरोना की महामारी से उत्पन्न हुवे संकटों के कारण युवा निराशा की खाई में जा रहे है वही मनीष जी उनका हौसला बांधने का कार्य कर रहे है. जमीनी स्तर से लेकर सरकार के साथ मिलकर निति निर्धारण के क्षेत्र में भी वे हमेशा कार्यरत रहे है. भारत समेत आशिया के अन्य देश भी जहा विकासंशिलता की राह पर है वही उनके साथ मिलकर काम करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. इसी बात को ध्यान में रखते हुवे मनीष जी ने नेपाल, भूटान, थायलंड, चीन जैसे अन्य देशों के युवा विकास के क्षेत्र में भी भागीदारी देने का कार्य कर राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्षम युवाओं को बुनियाद के रूप में प्रतिष्ठापित करने का प्रयास किया.

            केन्द्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय में कार्यरत मनीष जी आजकल देश की राजधानी दिल्ली में रहते है. लेकिन आज भी उनका मन ग्रामीण युवा, विकास, परिवर्तन और उसके लिए पर्याप्त प्रबोधन क्षेत्र पर टिका हुवा है. अमरावती विश्वविद्यालय के राज्यपाल नामित सीनेट सदस्य होने के नाते उन्होंने अनेक छात्र समस्याओं पर केवल बात की बल्कि जरुरत पड़ने पर आंदोलन का रास्ता भी चुना. इसी कारण आज का ग्रामीण छात्र उनके साथ बेहिजक बात कर सकते है और अपनी तखलिबे उन्हें बता सकते है.

            आज जहाँ पुरे विश्व में 'कोविड १९' के महामारी से लोग अपने घरों में बंद है वही मनीष जी जैसे लोग मेहनतकश मजदूरों को उनके घरों तक पहुचाने की व्यवस्था में लगे हुवे है. इतना ही नहीं अपनी 'विशाखा' सामाजिक संस्था के माध्यम से 'रियल कोरोना वारियर्स' को सन्मानित कर उनका हौसला बंधाने में भी जुटे हुवे है. शायद इसी लिए केवल महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देशा के अनेक युवा उन्हें आज एक आदर्श के रूप में देखते है. एक दिन बातों-बातों में मैंने भी उनसे पूछ लिया "सर, युवा आपसे प्रेरणा लेते है लेकिन आपको प्रेरणा कहा से मिलती है ?" वे मुस्कुराए और बोले, "जिन्होंने संविधान लिखा था..."

            मनीष जी जैसे कई लोग आज सामाजिक विकास और परिवर्तन के क्षेत्र में कार्यरत है लेकिन जरुरत है की हम भी उनके साथ खड़े रहे.    

   

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